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“आप सभी ऐसा कैसे कह सकते है? इंसानियत नही बची क्या आप लोगों में।” शैलजा ने गुस्से से चिल्लाते हुए पूछा। कम उम्र की शैलजा काफी पतली दिखाई दे रही थी।
“हमने आज से पहले लड़के के रेप के बारे में नही सुना।” घर पर इक्कठा हुई भीड़ में से एक महिला ने कहा।
“आपने नही सुना तो इसका मतलब लड़कों का रेप ही नही होता।” शैलजा ने अपने रवैए को बरकरार रखते हुए कहा और फिर आगे बोली। “घरेलू हिंसा, मार पीट, बालात्कार, यौन शौषण और भी बहुत कुछ.... सिर्फ लड़कियों के साथ ही नही होता है... लड़कों के साथ भी होता है। पर कोई मानता ही नहीं। लड़कों की भावनाएं ही नही होती। लड़के बस दूसरों को प्रताड़ित कर सकते है खुद प्रताड़ित नही हो सकते। कहने को यह समाज पुरुष प्रधान है। पर अगर वही पुरूष संकट में हो तो कोई उसकी मदद नही करता। मदद तो दूर की बात है कोई यकीन भी नही करता। ना जाने लोग विक्टिम के साथ कभी खड़े क्यों नहीं होते। सिवाए दिलासा देने के वे कुछ भी नही करते।” शैलजा का एक एक शब्द खोखले समाज की सच्चाई बयां कर रहा था।
“तुम कितना भी भाषण क्यों ना दे लो। इस से सच्चाई नही बदलने वाली।” एक लड़के ने बड़े ही बेकार तरीके से अपनी बात कही और फिर आगे बोला। “निशांक ने ही लड़की के साथ कुछ गलत किया होगा। जिसका इल्जाम यह अब उल्टा लड़की पर डाल रही है।”
“सही कह रहे हो तुम। हमें उस लड़की के साथ खड़ा होना चाहिए नाकि इस लड़की के भाई के साथ।” दूसरे लड़के ने पहले लड़के की बात समर्थन करते हुए कहा।
सोलह साल का निशांक अपने कमरें में बैठा हुआ था। भावहीन चेहरे से वह छत को घूर रहा था। उसके शरीर का एक एक हिस्सा दर्द से दुःख रहा था।
जो उसके साथ हुआ था उसका दर्द सिर्फ वही समझ सकता था। कमरें में बैठे हुए उसे बाहर मौजुद लोगों की आवाजें साफ साफ सुनाई दे रही थी। वे आवाजें उसके कानों में पिंघले हुए सीसे का काम कर रही थी।
“बस...! कोई चुप करो इन लोगों को।” निशांक ने चिल्लाते हुए कहा और अपने दोनों कानों को कस कर पकड़ लिया। बाहर के शोर में उसकी आवाज दब गई। कोई उसे नही सुन पाया और उसे पिछले दिनों की बातें याद आने लगी।
“रूही...” कहकर वह चुप हो गया। थोड़ी देर रुकने के बाद निशांक बोला। “रूही! मुझे माफ करना। मै तुमसे प्यार नहीं करता। वी आर गुड फ्रैंड्स ड्यूड।”
“ये क्या बकवास कर रहे हो तुम?” रूही ने गुस्से से दनदनाते हुए पूछा और फिर आगे बोली। “मुझे मालूम है। तुम उस चुड़ैल से प्यार करते हो।”
“नही... मै उस से भी प्यार नही करता। वो तो बस मेरी क्लास मेट है और कुछ नही। काम पड़ने पर हमारी बस कभी कभार बातचीत हो जाती है।” निशांक ने रूही को समझाते हुए कहा।
पर रूही ने उसकी एक ना सुनी। उसके कानों में नित्या की कही हुई बात गूंज रही थी। “मै निशांक से प्यार करती हूं और निशांक मुझ से।”
“तुम इतने यकीन के साथ कैसे कह सकती हो?” रूही ने शकी निगाहों से पूछा।
“तभी तो नोट्स के बहाने वह मुझ से मिलता है।” नित्या ने खुश होते हुए जवाब दिया।
आगे कुछ इत्तेफाक ऐसे हुए की रूही को यकीन हो गया कि निशांक नित्या से प्यार करता है। पर हकीकत कुछ और ही थी। रूही को वह अपना अच्छा दोस्त मानता था। इसके अलावा नित्या से उसकी मुलाकात इत्तेफाक से या फिर काम के सिलसिले में ही होती थी। दोनों को साथ देकर रूही की रूह तक जल उठती थी।
“वो तो बस काम के सिलसिले में बात होती है। हम दोनों आपस में ट्यूशन नोट्स एक्सचेंज कर लेते है। ताकि अच्छे से पढ़ाई हो सके।" निशांक ने मासूमियत के साथ जवाब दिया।
“एक लड़की के लिए मुझ से झूठ भी बोलने लगे।” रूही ने तेवर बदलते हुए कहा।
“ऐसा नही है यार।” निशांक ने उसे समझाते हुए कहा।
निशांक के लाख समझाने के बाबजूद भी रूही ने उसकी एक ना सुनी। उसके दिमाग में बस एक बात ही बैठ चुकी थी और वह यह थी कि निशांक, नित्या ने प्यार करता है।
समय के साथ साथ नित्या के अंदर की नफरत बढ़ने लगी और इतनी ज्यादा बढ़ गई की उसकी कोई सीमा ही नही रही। बाकी निशांक की मनाही ने आग में घी का काम कर दिया।
रूही के अंदर की नफरत इतनी ज्यादा बढ़ गई कि उसे सही और गलत में फर्क भी पता चलना बंद हो गया। निशांक के लिए कब उसका प्यार पागलपन में बदल गया, इस बारे खुद रूही को भी पता नही चला।
इसी नफरत और पागलपन के चलते रूही ने वह काम कर डाला, जिसकी किसी में कल्पना भी नही की थी। एक दिन उसने निशांक को मिलने के लिए बुलाया और चाय में बेहोशी की दवाई मिलाकर उसका बलात्कार कर दिया। निशांक पर इस घटना के बाद क्या बीत रही थी इस बात का अंदाजा कोई भी नही लगा सकता था। उसकी जिन्दगी एक दोस्त के पागलपन की भेट चढ़ चुकी थी।
एक बार फिर से निशांक को बाहर से आवाजे आने लगी।
“लड़की गरीब है तो मतलब बेबुनियाद इल्जाम लगा दोगी तुम?” एक लड़की ने शैलजा का विरोध करते हुए कहा।
“सही कह रही हो। अपने भाई की गलती छिपा रही है।” दूसरी लड़की ने पहली लड़की की बात का समर्थम करते हुए कहा।
“इन लोगों की वजह से ही लड़कियों को इंसाफ नही मिलता।” भीड़ में से एक औरत की आवाज आई।
शैलजा को अपनी आंखो पर यकीन नही हो रहा था। कोई भी लड़के के साथ हुए रेप को सच ही नही मान रहा था। सभी उसकी बातों को झूठ और लड़की को फसाने की चाल बता रहे थे। शैलजा ने लोगों को समझाने की लाख कोशिश की, पर किसी ने उनकी एक भी ना सुनी। कोई फैसला ना होने पर धीरे धीरे भीड़ वहां से छटने लगी।
शैलजा ने अपने भाई के लिए केस लड़के की बात कही। पर घर वालों ने साफ मना कर दिया। उन्हें लोगों की सोच की ज्यादा परवाह थी। जोर जबरदस्ती कर शैलजा ने घर वालों को मना लिया।
इस केस में शैलजा ने दिन रात एक कर दिया। सब कुछ सही रहा। पर बाद में मौके पर फॉरेंसिक रिपोर्ट ने साथ छोड़ दिया। किसी ने रिपोर्ट को बदल दिया था। फैसला निशांक के विरोध में सुनाया गया। पर रूही के कहने पर उसे कोई सजा नही दी गई।
फैसले से पहले निशांक सौ मौत मरा और फैसले के बाद उसकी जिन्दगी मौत से भी बदतर हो गई। हर कोई उस से नफरत करने लगा। कोई उसके पास भी नही आना चाहता था।
मां बाप ने स्कूल वालों को धमकी देनी शुरू कर दी या तो वे निशांक को स्कूल से निकाले या फिर वे अपने बच्चों को स्कूल से निकाल लेंगे। मजबूरन स्कूल वालों ने निशांक को स्कूल ने निकाल दिया।
हर जगह से उसे दुत्कार दिया गया। निशांक अपने कमरे तक ही सीमित रह गया। ना वह किसी से मिलना चाहता और ना ही कोई उस से मिलता। सिवाए तानों और घुटन के उसे कुछ भी नही मिला।
काफी देर से घर का दरवाजा पीटने की आवाजें आ रही थी। शैलजा ने दरवाजा खोला तो सामने पुलीस को पाया।
“ये निशांक का घर है क्या?” पुलीस इन्स्पेक्टर ने दरवाजे खुलते ही पूछा।
“जी।” शैलजा ने संक्षिप्त सा जवाब दिया। और फिर आगे बोली। “क्या हुआ सर?”
“हमें समुंद्र किनारे निशांक की बाइक और वॉलिट मिला है। काफी छान बीन के बाद उसकी बॉडी नही मिली।” पुलीस इन्स्पेक्टर ने दुःख प्रकट करते हुए कहा। निशांक की बाइक और पर्स देकर वहां से चला गया।
सामान को देखकर शैलजा फुट फुट कर रोने लगी।
“क्या हुआ?” रोती हुई शैलजा की आवाज सुनकर उसके पापा ने अंदर से बाहर आते हुए पूछा।
“निशांक ने खुदखुशी कर ली। पर मुझे इस बात पर यकीन नही हो रहा।” शैलजा ने खुद को संयमित करते हुए कहा।
“अच्छा हुआ मर गया। जीते हुए तो हमारी इज्जत मिट्टी में मिला गया। उसके मरने के बाद अब सुकून से जी लेंगे हम।” शैलजा के पापा ने बड़ी ही कड़वाहट के साथ कहा।
शैलजा हैरानी के साथ उन्हें बस देखती रह गई। निशांक के मरने का दुःख किसी को भी नही था सिवाए शैलजा के। उसके कानों में निशांक के आखिरी शब्द गूंज रहे थे।
“मै बाहर जाना चाहता हूं। मै इस दुनियां से शान्ति चाहती हूं। बाहर घूम आने पर क्या पता मुझे इस घुटन से मुक्ति ही मिल जाए। एक जगह बैठ कर मै घुट रहा हूं।” उस वक्त शैलजा उसकी कही हुई बात का मतलब नहीं समझ पाई। समझ पाती तो उसे कभी घर से बाहर ही जाने ना देती।
“संभालिए दी खुद को।” अभय और आल्हादिनी ने लड़खड़ाती हुई शैलजा को कुर्सी पर बैठाते हुए कहा।
“वह निर्दोष था।” कहकर शैलजा रोने लगी। आल्हादिनी ने शैलजा को चुप कराया और अभय ने उन्हें पीने के लिए पानी दिया। सभी को शैलजा के फॉरेंसिक एक्सपर्ट बनने के पीछे का कारण पता चल चुका था।
किसी के पास कहने के लिए शब्द ही नहीं थे। वहां पर हर किसी के अपनों को खोया था जिसकी वजह से उनके बीच दुःख का रिश्ता बन चुका था जो हर रिश्ते से ऊपर होता है।
सभी को आज एक दूसरे के बारे में काफी कुछ पता चला था सिवाए अभय को छोड़कर। उसके साथ जो कुछ हुआ था वह अतीत के पन्नों के दफन था।
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जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है, बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️
hema mohril
25-Sep-2023 03:29 PM
Fantastic
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Barsha🖤👑
01-Feb-2022 09:20 PM
Nice part
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